yaadein
आज ना जाने किस मन से पिछला पन्ना खोल रही हूँ पास नहीं हो तुम मेरे पर मैं तुमसे ही बोल रही हूँ मैंने तुमसे हंसकर मिलना और रोकर बिछड़ना देखा है ज़िंदगी के अपने इस सूरज पे काले बादल का साया देखा है हाथों में मेरे खिंची ना जाने ये कैसी-कैसी रेखा है अपनी बंद क़िस्मत की परतें धीरे-धीरे खोल रही हूँ ...
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