yaadein
पिछला पन्ना खोल रही हूँ
पास नहीं हो तुम मेरे पर
मैं तुमसे ही बोल रही हूँ
मैंने तुमसे हंसकर मिलना
और रोकर बिछड़ना देखा है
ज़िंदगी के अपने इस सूरज पे
काले बादल का साया देखा है
हाथों में मेरे खिंची ना जाने
ये कैसी-कैसी रेखा है
अपनी बंद क़िस्मत की परतें
धीरे-धीरे खोल रही हूँ
पास नहीं हो तुम मेरे पर
मैं तुमसे ही बोल रही हूँ....
रखना धर्य अब बस में नहीं
मुझमें अब इतना सामर्थ्यें नहीं
कि निहारू ना पलटकर इतिहास कभी
क्या देखूँ भविष्य को आगे
जब वर्तमान ही साथ नहीं
अपने जीवन के हर पल को
तुम्हारी यादों के संग तोल रही हूँ
पास नहीं हो तुम मेरे पर
मैं तुमसे ही बोल रही हूँ.....
श्वेता शर्मा
“रैना”
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Deep emotions , nice selection of words , it's wonderful poem.....
ReplyDeleteKeep it up.
सुन्दर भाव, संवेदना के स्तर पर अन्तस की पीर , कविता में बडे ही प्रभावी ढंग से व्यक्त हुई है, बधाई।
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